गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

Pooja (laghukatha)

 पूजा 


" सुनिये ! ", पत्नी ने पति से कहा

" जी कहिये", पति ने पत्नी की तरह जवाब दिया तो पत्नी चिढ़ गयी. पति को समझ आ गया और पत्नि से पूछा कि क्या बात है. 

" आज मुझे मन्दिर ले चलें, आज शुक्रवार है और मुझे माताजी के दर्शन करने हैं ", पत्नी ने कहा 

इस पर पति थोड़ा संजीदा हो गये, उसे पता था कि वह जाये बिना मानेगी नहीं. उसने उसे मनाने का  प्रयास किया, " घर में भी तो मन्दिर है और वहाँ भी तो देवीजी की प्रतिमा है. फ़िर मन्दिर जाने की क्या जरूरत है ", पति की बात से पत्नि रूठ गयी. पति चाह कर भी यह समझा न पाया कि आज जो देश के हालात हैं, उसमें तो मन्दिर्, मस्जिद, चर्च ,गुरुद्वारा जाना इतना जरुरी नहीं, इश्वर को घर में ही पूजा जा सकता है. कुछ लोगों ने ईश्वर के इस स्थान का इस्तेमाल जिस तरह से किया है आज पूरा देश इस बीमारी के खौफ़ में जीने को मजबूर है. पति इस तरह सोचते हुए पत्नी को आवाज लगाने लगे कि वे उसे मन्दिर ले जाने के लिए तैयार है, पर पत्नि ने उन्हें ये कहकर मना कर दिया कि वह घर में ही पूजा कर लेगी, वे ये सुनकर आश्चर्य से भर गये, और मन ही मन बुदबुदाये - देर आयत दूरुस्त आयत. 














गुरुवार, 8 मार्च 2018

8 मार्च - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

वो

सुबह होते ही
वो उठती है
और;
कुँए से
पानी भरकर लाती है.
फिर नहाकर;
चूल्हा जलाती है,
पर...
चूल्हा बुझ जाता है.
वो
धौंकनी से फूंक मारती है;
पर
गीली लकड़ी
एक फूंक में
नहीं जल पाती है.
फिर एक बार,
वो
कोशिश करती है.
इस बार,
केवल धुंआ उठता है.
जो
उसकी आँखों में;
कुछ और तो नहीं;
पर
आंसू दे जाता है.
इतने में;
सास चिल्लाती है.
जल्दी कर
तेरे मायके वाले:
क्या चूल्हा जलाएंगे...?”,
उसकी आँखों में
एक बार फिर;
पानी भर आता है.
पर
वो
उसे पल्लू से
पोंछ लेती है.
और
चूल्हे पर झुककर;
ये कहते हुए...
“ हाँ...माजी
बस करती हूँ”.
धौंकनी से जल्दी से
फिर
लकड़ी जलाने की
फिर कोशिश करती है.


वीणा सेठी 

सोमवार, 18 दिसंबर 2017

मेरी कविता - जीवन


जीवन




चित्र - google.com

जीवन
तुम हो  
 एक अबूझ पहेली,
न जाने फिर भी 
क्यों लगता है
तुम्हे बूझ ही लूंगी.
पर जितना तुम्हे 
हल करने की 
कोशिश करती हूँ,
उतना ही तुम 
उलझा देते हो.
थका देते हो.
पर मैंने भी ठाना है;
जितना तुम उलझाओगे ,
उतना तुम्हे 
हल करने में;
मुझे आनद आएगा.
और
इसी तरह देखना;
एक दिन 
तुम मेरे 
हो जाओगे. 
(वीणा सेठी)

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